नित्यं गीतोपयोगित्वमभिज्ञेयतवम्प्यूत।
लक्षे परोक्तसु पर्यातम संगीत्म्श्रुति लक्षणम ।।
उपरयुक्त श्लोक अभिनव राग मंजरी से लिया गया है जिसका अर्थ है,
वह आवाज़ जो किसी गीत में प्रयुक्त की जा सके और एक दूसरे से स्पष्ट भिन्न पहचानी जा सके।
उदाहरण कि लिए अगर 240 कम्पन प्रति सेकंड कोई एक स्वर है तो 241 उससे भिन्न है लेकिन शायद उसे कुशल संगीतकार भी अपने कानो से नहीं पहचान पाए ,और यदि 240 से हम 245 क़रीब आते है तो शायद उसमें भिन्नत पहचानी जा सके ।
इसी आधार पर विद्वानो ने श्रुति की परिभाषा यह दी है की जो ध्वनि एक दूसरे से भिन्न स्पष्ट पहचानी जा सके ।
एक सप्तक में इसी प्रकार 22 एसे सूक्ष्म ध्वनिया है जो हम कानो से पहचान सकते है और उसमें स्पष्ट भेद कर सकते है।
इन्हीं 22 ध्वनियो पर 12 स्वरों की स्थापना है जिसमें 7 शुद्ध ,4 कोमल ,1 स्वर तीव्र है ।
तस्या दवविंश्शतिभेरद श्रवनात शृत्यो मता:।
हृदयभ्य्न्त रसंलग्ना नदयो द्वविर्शतिमर्ता :।।
उपयुक्त श्लोक स्वरमेलकलानिधि से लिया गया है । जिसका अर्थ है हृदय स्थान में 22 नडिया होती है और उनकी सभी २२ ध्वनिया स्पष्ट रूप से सुनी जा सकती है । यही नाद के भी 22 भेद माने गए है ।
स्वरों में श्रुतियो को बाटने का नियम जानिए -
4 3 2 4 4 3 2
चतुश्चतुश्चतुश्चतुश्चैव षडजम माध्यमपंचमा।।
द्वे द्वे निषाद गंधारो तरस्त्रिषभोधैवतो ।।
अर्थात -
षडज मध्यम और पंचम स्वरों में चार चार श्रुतियाँ
निषाद और गांधार में दो दो श्रुतियाँ
ऋषभ और धैवत में तीन तीन श्रुतियाँ ।
श्रुतियो के नाम आधुनिक श्रुति स्वर व्यवस्था प्राचीन श्रुति स्वर व्यवस्था
तीव्रा - षडज
कुमुदवती
मंदा
छनदोवती 4) षडज
दयावती - ऋषभ
रंजनी
रतिका 7) ऋषभ
रौद्री - गांधार
क्रोधा 9) गांधार
वज्रिका - मध्यम
प्रसाऋणी
प्रीति
मार्जनी 13) मध्यम
क्षिति - पंचम
रक्ता
संदीपनी
आलपनी 17) पंचम
मंदती - धैवत
रोहिणी
रम्या 20) धैवत
उग्रा - निषाद
क्षोभिणी 22) निषाद
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